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लेखनी कहानी -01-Jun-2022 डायरी जून 2022

किस किस घर को याद करूं 


डायरी सखि , 
"क्या भूलूं क्या याद करूं" की तरह किस किस घर को याद करूं ? एक घर हो तो बताऊं , यहां तो दर्जन भर से भी अधिक घरों ने मुझे संभाला है । चलिए,  आज सबको याद करते हैं । 
पहला घर था हमारा हमारे ताऊजी का मकान । मैं चौथी कक्षा में था तब तक उसमें रहे थे हम लोग । तब ताऊजी किसी दूसरे गांव में रहते थे नौकरी के कारण । घर खाली पड़ा था उन्होंने हमें दे दिया रहने के लिए । बड़े मजे से बचमन बीता था उसमें । 

एक दिन ताऊजी और बाबूजी में झगड़ा हो गया । बस, घर खाली करने का फरमान जारी हो गया । ताऊजी के घर की बगल में एक मकान खाली पड़ा था  । बाबूजी ने वह मकान खरीद लिया और हम लोग उसमें शिफ्ट हो गये । 

उस मकान की विशेषता यह थी कि उस मकान में मकान मालिक की मां की आत्मा भटकती थी । मां ने कई बार कहा कि उन्हें वह दिखाई दी थी । भाभी तो अक्सर कहती रहती थीं । वे डरती भी थीं, इसलिए शायद उन्हें ज्यादा दिखती थी वह आत्मा । पर मुझे कभी नहीं दिखी वह औरत । कभी परेशान भी नहीं किया किसी को । मुझे तो मन का वहम लगा वह सब । इस आत्मा के चक्कर में बाबूजी ने एक नया मकान बनवाना शुरू कर दिया । 

भाभी के पहला बच्चा होने वाला था । तो मां बाबूजी ने नये मकान में प्रसव कराने का निर्णय लिया । हम लोग नये मकान में आ गए  । नया मौहल्ला , नये यार दोस्त,  नया माहौल । पुराने दोनों घरों की याद आती थी । तब तक मैं कक्षा छः में आ गया था । 

कक्षा सात में आते ही मेरी बड़ी बहन की शादी हुई । पीने के पानी के लिए गुर्जरों के मौहल्ले वाले कुए पर जाना पड़ता था और नहाने के लिए जोगी मौहल्ले की खारी कुईं पर । जब मैं आठवीं कक्षा में आया , तब घर में नल लगा और पानी की किल्लत दूर हुई । कक्षा नौ में आने के बाद दीपावली के आसपास बिजली आई । तब तक लालटेन और चिमनियों से काम चलाते थे । कक्षा 10 में आया तब मेरी दूसरी बहन की शादी हुई । तब तक मेरी भाभी के दो पुत्रियां हो चुकी थीं । 

कक्षा 11 तक आते आते मेरा भतीजा हो गया । भाभी इसी क्षण का इंतजार कर रही थी । बेटा पैदा होते ही तुरंत अलग हो गई और सामने के मकान में एक कमरा किराए पर लेकर रहने लगीं । घर में हम तीनों भाई बहन और मां, बाबूजी रह गए थे । बच्चों के बिना अधूरा सा लगता था वह घर । 

अब आया सन 1979 । इस साल मैंने कक्षा 11 पास की थी । अब मुझे कॉलेज में पढने जाना था जयपुर  । घर छोड़ना बहुत भारी काम था पर छोड़ना पड़ा । ये समझो कि मेरा उस घर से नाता उसी दिन से टूट गया था जिस दिन मैं जयपुर पढने आ गया । 

बी कॉम प्रथम वर्ष की परीक्षाओं के बीच ही तीसरी बहन की शादी हो गई  । और एम कॉम प्रीवियस की परीक्षा के दौरान मेरी छोटी बहन की भी शादी हो गई  । अब मैं जब भी छुट्टियों में घर आता , घर खाली खाली नजर आता । मां खेत पर और बाबूजी दुकान पर । सभी भाई बहनों की बहुत याद आती थी । मगर समय का चक्र तो चलता रहता है । 

1984 में एम कॉम किया । दिसंबर में धौलपुर के राजकीय कॉलेज में प्रोफेसर बन गया । लगभग आठ नौ महीने रहा था वहां पर । तब तक दो घर बदल डाले । पहला घर जिस लोकेशन पर,था वह तो पूछो ही मत । बस सही सलामत निकल लिए वहां से, यही गनीमत है । बाद में नागौर जिले में डीडवाना में बांगड़ कॉलेज में चार महीने रहा । वहां भी दो मकान बदले । 

1986 में बारां कॉलेज में चला गया । यहां मकान लेने में बहुत समस्या आई । तब तक मैं 23-24 साल का था और कॉलेज में पढने वाला छात्र लगता था । इसलिए शक्ल देखकर ही लोग कमरा देने से मना कर देते थे । बड़ी मुश्किल से एक कमरा मिला । साल भर रहे उसमें फिर एक इन्डिपेन्डेन्ट घर मिल गया । तब तक शादी की बात चल चुकी थी इसलिए एक अच्छा घर भी चाहिए था । 1988 मार्च में शादी हुई और हम दोनों उस घर में मजे से रहने लगे । 
बाद में मैंने अपने गांव के पास बांदीकुई कॉलेज में स्थानांतरण करवा लिया । यहां भी दो मकानों में रहा । यहां पर 1989 में पुत्र हिमांशु का जन्म हुआ  । 

सितंबर 1989 में मेरा स्थानांतरण पी जी कॉलेज कोटपूतली जिला जयपुर में हो गया । यहां पर लगभग चार साल रहे और वह भी एक ही मकान में । उसकी यादें अभी भी ताजा हैं । फिर मेरा स्थानांतरण अलवर जिले के बहरोड कॉलेज में हुआ । वहां पर मैंने राजस्थान प्रशासनिक सेवाओं के लिये तैयारी की और मैं RAS बन गया । श्रीमती जी भी राजकीय विद्यालय में अंग्रेजी की वरिष्ठ अध्यापिका बन गई  । 1995 में बेटी इति श्री का जन्म हुआ । जुलाई 1996 तक हम लोग एक ही मकान में रहे थे । 

अब मेरी अलवर में ट्रेनिंग शुरू हुई।  इसलिए कुछ महीने अलवर रहना पड़ा । अक्टूबर 1996 में मेरी पोस्टिंग सहायक कलक्टर,  भरतपुर में हुई । तब पहली बार सरकारी आवास में रहने को मिला । फिर तो एस.डी एम तिजारा,  बालोतरा, बेगूं,  गंगानगर में 2004 तक रहा । 

तब तक बेटा थोड़ा बड़ा हो गया था । उसकी कोचिंग के लिए कोटा आना था । इसलिए कोटा स्थानांतरण करवाया । श्रीमती जी का भी स्थानांतरण कोटा करवा लिया । वहां पर एक बहुत अच्छा सरकारी आवास मिला जिसकी यादें आज तक सजी हुई हैं, में लगभग पांच वर्ष रहने का मौका मिला । यद्यपि मेरा बीच में स्थानांतरण हो गया था लेकिन परिवार उसी में रहा । यहीं पर मेरे पुत्र हिमांशु का चयन IIT दिल्ली में हो गया था । 

वर्ष 2008 में मेरा स्थानांतरण ADM बीसलपुर में हुआ फिर सवाईमाधोपुर में हुआ । वर्ष  2009 में मैं जिला रसद अधिकारी के पद पर अजमेर आ गया । वहां तीन साल रहा । फिर मेरा स्थानांतरण अतिरिक्त कलक्टर,  टौंक हो गया । वहां पर एक भूलभुलैया टाइप का बंगला मिला । 

इसी बीच में परिवार कोटा ही रहा । उनके रहने के लिए एक फ्लैट खरीदा । चूंकि वह हमारा पहला मकान था जिसके स्वामी हम थे तो उसका "नांगल" भी किया । उस फ्लैट में जाने की जो खुशी परिवार में थी वह अवर्णनीय है । गृह प्रवेश 1 जनवरी 2010 को किया था । 

इसी बीच बेटी ने सीनियर की परीक्षाएं 2013 में पास कर ली थी । उसे बी ए , एल एल बी ड्युअल कोर्स करना था । इसलिए राजस्थान विश्व विद्यालय में प्रवेश दिलवाने के लिए मुझे अपना स्थानांतरण जयपुर करवाना पड़ा । मैं यहां चुनाव आयोग में आ गया और श्रीमती जी का स्थानांतरण भी जयपुर में करवा लिया । यहां पर मानसरोवर में हमारा एक मकान था जो किराए पर उठाया हुआ था , उसमें रहने लगे । 

हर पुरुष के मन में एक ड्रीम गर्ल और एक ड्रीम हाउस बैठा रहता है । ड्रीम गर्ल तो 1988 में मिल गई मगर ड्रीम हाउस अभी तक नहीं बना था । 

राजस्थान में 2013 में विधान सभा चुनाव हुए और लोकसभा के चुनाव 2014 में हुए । चूंकि मैं चुनाव आयोग में था इसलिए लोकसभा चुनाव के बाद कोई काम नहीं था । तब नया मकान बनवाना शुरू किया जो वाकई मेरे ड्रीम हाउस जैसा था । अक्टूबर 2015 में वह बनकर तैयार हुआ । यह मकान जिसका नाम "वात्सल्य" रखा गया जो मुझे मेरी मां के स्नेह और वात्सल्य की याद दिलाता है । इस मकान से बहुत लगाव है मुझे । पूरे समर्पण भाव से बनवाया है यह मकान । 

मुझे लगा कि मेरे मकानों की यात्रा का यह अंतिम पड़ाव था । मगर किस्मत को कुछ और ही मंजूर था । 2018 के विधान सभा और 2019 के लोकसभा चुनाव करवाने के बाद मेरा स्थानांतरण राजस्व मंडल , अजमेर में हो गया । 2019 से यहां भी एक घर किराए पर लेना पड़ा । 

इस प्रकार मकानों की यह यात्रा काफी लंबी हो गई है । अब 31 अगस्त को सेवानिवृत्ति है तो समझो कि अब यह आखिरी मकान है । इसके बाद तो "वात्सल्य" में ही रहना है । इसी बीच बेटे की शादी 2019 में और बेटी की शादी 2022 में हो गई  । नवंबर  2021 में पोता शिवांश भी हो गया । अब सारे अरमान पूरे हो गए हैं । कोई ख्वाहिश नहीं रही । ईश्वर की भरपूर कृपा रही है मुझ पर।   अब लेखन में अपने हाथ आजमा रहे हैं । रिटायर्मेंट के बाद बस यही काम करना है । बहुत सी योजनाएं हैं जिन्हें अमली जामा पहनाना है । और हां, एक यू ट्यूब चैनल भी खोलना है । 😄😄😄

तो सखि, अब चलते हैं   कल फिर मिलते हैं । 

हरिशंकर गोयल "हरि" 
20.6.22 

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2 Comments

Seema Priyadarshini sahay

22-Jun-2022 10:58 AM

बेहतरीन रचना

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Pallavi

21-Jun-2022 04:53 PM

Nice 👍

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